मोहन प्रेम बिना नहीं मिलता,
चाहे करले कोटि उपाय।।
राग – दरबारी।
मिले ना यमुना सरस्वती में,
मिले ना गंगा नहाय,
प्रेम सरोवर में जब डूबे,
प्रभु की झलक लखाय,
मोहन प्रेम बिंना नही मिलता,
चाहे करले कोटि उपाय।।
मिले ना पर्वत में मिले ना निर्जन में,
मिले ना वन भरमाय,
प्रेम बाग घूमे तो,
हरि को घट में ले पधराय,
मोहन प्रेम बिंना नही मिलता,
चाहे करले कोटि उपाय।।
मिले ना पंडित को ज्ञानी को,
मिले न ध्यान लगाय,
ढाई अक्षर प्रेम पढ़े जो,
नटवर नैन समाय,
मोहन प्रेम बिंना नही मिलता,
चाहे करले कोटि उपाय।।
मिले न मंदिर में मूर्ति में,
मिले न अलख जगाय,
प्रेम ‘बिन्दु’ दृग से टपके तो,
तुरत प्रकट हो जाय,
मोहन प्रेम बिंना नही मिलता,
चाहे करले कोटि उपाय।।
मोहन प्रेम बिना नहीं मिलता,
चाहे करले कोटि उपाय।।
स्वर – रमेश जी दाधीच।
रचना – बिंदु जी महाराज।