झलक एक अपनी दिखा मुरली वाले,
सम्भलता नहीं दिल, सम्भालूं मैं कैसे,
बता दे तू ही कैसे, इसको संभाले,
झलक एक अपनी दिखा मुरली वाले।।
कानों में तेरी बंसी की धुन जो पड़े,
ऐसा लगता बजाते मिलोगे खड़े,
मगर खाए धोखा ये नजरे हमारी,
दिखाई ना दो नजरे जिधर हम डाले,
झलक एक अपनी दिखा मुरली वाले।।
माना छलिया है तू ओ मेरे सांवरे,
ढूंढ़ते तुझको ये थक गए पाँव रे,
है मंजूर सबकुछ तेरा श्याम प्यारे,
सितम चाहे जितना मुझपे तू ढाहे,
झलक एक अपनी दिखा मुरली वाले।।
देखूं जी भर तुझे है तमन्ना मेरी,
आँखे हो ये मेरी और सूरत तेरी,
भरी आंसुओ से ‘कुंदन’ की अँखियाँ,
तू छलका दे आके इन अंसुओ के प्याले,
झलक एक अपनी दिखा मुरली वाले।।
झलक एक अपनी दिखा मुरली वाले,
सम्भलता नहीं दिल, सम्भालूं मैं कैसे,
बता दे तू ही कैसे, इसको संभाले,
झलक एक अपनी दिखा मुरली वाले।।
स्वर – कुमारी गुंजन।
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