आजा मेरे साँवरे,
सुण ले करुण पुकार,
आकर बांह पकड़लो बाबा,
मैं भी गया हूँ हार।।
साथ कोई ना दे रहा,
मैं दर दर भटक रहा,
कैसे दिन ये आये बाबा,
सबको खटक रहा,
जीवन बोझ लगने लगा अब,
कैसे उठाऊँ भार,
आकर बांह पकड़लो बाबा,
मैं भी गया हूँ हार।।
मतलब की है दुनिया सारी,
बिन मतलब ना बात,
तेरे दर पे आन पड़ा मैं,
अब तो बढाओ हाथ,
तू ही मेरा आसरा और,
तू ही जीवन सार,
आकर बांह पकड़लो बाबा,
मैं भी गया हूँ हार।।
हम दीनों का एक ठिकाना,
श्याम तेरा दरबार,
तेरी किरपा बनी रहे तो,
हो जाये उद्धार,
“पुष्कर” बैठा तेरे भरोसे,
कर दो नैया पार,
आकर बांह पकड़लो बाबा,
मैं भी गया हूँ हार।।
आजा मेरे साँवरे,
सुण ले करुण पुकार,
आकर बांह पकड़लो बाबा,
मैं भी गया हूँ हार।।
लेखक – पुष्कर भारद्वाज।
9924596777