थारे रुणिचा को दाल चूरमा,
मन में भावे रे,
बाबा रुणिचे को।।
पर्चा वाली बावड़ी को,
पानी चोखो लागे रे,
गंगाजल सु मिठो लागे,
कस्ट मिटावे रे,
बाबा रुणिचे को।।
सवामणी बनवाकर बाबा,
तेरे भोग लगावा जी,
भगता सागे मार सबड़का,
जी भर खावो जी,
बाबा रुणिचे को।।
बर्फी पैडा और कलाकन्द,
सारे फीके पड़गे जी,
दूध मलाई रबड़ी अब तो,
याद ना आवे ओ,
बाबा रुणिचे को।।
रामधनी कुछ ऐसा करदे,
बारह महीने खावा जी,
दाल चूरमा खा खा करके,
भजन सुनावा जी,
बाबा रुणिचे को।।
जम्मा जागण जद भी होवें,
चूरमो बनाओ जी,
रामधणी के भोग लगाकर,
सबने बांटो जी,
बाबा रुणिचे को।।
भंडारा की प्रसादी में,
दाल चूरमो सोहे रे,
दास गोपाला चूरमों तो,
मन में भावे रे,
बाबा रुणिचे को।।
थारे रुणिचा को दाल चूरमा,
मन में भावे रे,
बाबा रुणिचे को।।
गायक – गोपाल सोनी रतनगढ़।
9982095020








