तारण तिरण अभय पद दाता,
दोहा – सो सो चन्दा उगवे,
सूरज तपे हजार,
इतरा चानण होत भी,
गुरु बिन घोर अंधार।
तारण तिरण अभय पद दाता,
आप स्वामी हम दासा,
गुरूसा माने आपरी आसा।।
बाजीगर ने खेल रचाया,
नाना किया तमाशा,
जल की बुन्द का पीन्ड बणाया,
भीतर भरदीया स्वासा जी,
गुरूसा माने आपरी आसा।।
देहे मे रोम रोम मे चमड़ी,
चमड़ी धरया मासा,
हाड मे मास मास बुज है,
बुज बुंद परकासा जी,
गुरूसा माने आपरी आसा।।
देह में पवन पवन मे प्राण हे,
प्राणो मे पुरस नीवासा,
बोले आप ओर नही दुजा,
प्रेम पुरस प्रकासा जी,
गुरूसा माने आपरी आसा।।
घट घट मे बस आप ही बोले,
ओर नही कोई दुजा,
कहे मछीन्दर सुण जती गोरख,
मन धरया वीसवासा,
गुरूसा माने आपरी आसा।।
स्वर – रामदेव परेवा।
प्रेषक – हीरा लाल खारोल।
7742821120








