साधु भाई सुणो भड़द भगती का,
कर दील साफ काप नहीं रखना,
पंड में न पाप तरीका।।
संत स्वभाव सुनो सत्यवादी,
केवल लच भक्ति का,
द्रड की नीम दुरस कर देवो,
भणे महेल मुक्ती का।।
सील संतोख ज्ञान धुन निर्भय,
गाय तणा गुण निका,
करले विचार विवेक भजन का,
सात शब्द सुण जीका।।
आटुं अष्ट द्वादश अजपो,
लखन बतीसा निका,
सोला सार पांच खण केईये,
चार कलश करणी का।।
अंते करण का अंग पल टावो,
देवो जावण झुक्तीका,
तुज दस दोख मोक्ष फल पावो,
ऐई कारण मुक्ती का।।
श्रवण नेण नासका साजो,
मुख मार्ग मुक्ती का,
सोला सार भजन के सारे,
जतन राखज्यो जिका।।
धरी द्रष्टि नेण नासका उपर,
निर्मल नुर उनीका,
स्वासा छसो ईकीस हजारा,
रटज्यो नाम हरीका।।
पती प्रता नार पिया जी ने,
जाणे पाले वचन पतीका,
जेले वचन करे नहीं खीणा,
सजे भड़द शक्तिका।।
तीन दोस तन जीका टालो,
तीन दोस मन जीका,
चार दोस वचन का टालो,
ओरी दोस है कि का।।
सील संतोख सिवरणा साजो,
करो त्याग तपती का,
सिंवरया अष्ट हरी रस पिदा,
ओर रस सब फीका।।
भक्ति भाव खमिया अंग रेणी,
धीरप लक्ष भक्ति का,
दिल दरियाव समझ का सागर,
कारण नहीं करोड़ पति का।।
करिये जतन मथन सब त्यागो,
जावण जोग जती का,
धर लग अचल डगे नहीं चितमन,
आसण अगड मृतिका।।
ऊडबुद धार उलज गया अरमा,
कर कर रोज मजीका,
काटा करम पास में बंदिया,
नहीं मोसम मुक्ती का।।
कोईक दोस अक्षर का टालो,
कोईक वार तिथि का,
कोईक उल्जया धर अदर में,
भ्रम न मटिया जिका।।
साजे संत पंथ का पुरा,
जोगारम झुक्ती का,
धावे धरम करे गुरु सेवा,
कलश चढे करणी का।।
हरक गणा ज्याने हरिजन मलसी,
मन भर साद मतिका,
अजोग बजोग कसु नहीं व्यापे,
सदा सरब दिन निका।।
जेले नेम भेम नहीं राखे,
नक्षत्र वार तिथि का,
सदा भरत सत्यवादी भांटे,
सदा सरब दिन नीका।।
केवे दोलाराम भाग ज्याका,
भड़िया पोपुरबला तीका,
मोर छाप परवाना लखिया,
कारज सरग्या जिका।।
साधु भाई सुणो भड़द भगती का,
कर दील साफ काप नहीं रखना,
पंड में न पाप तरीका।।
गायक – प्रहलाद नाथ जी बागजणा।