पिया मिलन के काज आज,
जोगन बन जाउंगी।।
राग – दरबारी।
हार श्रृंगार छोड़कर सारे,
अंग बिभूत रमाऊँगी,
सिंगी सेली पहन गले में,
अलख जगाउंगी,
जोगन बन जाउंगी।।
काशी मथुरा हरिद्वार,
सब तीरथ नहाउंगी,
जाय हिमाचल करूँ तपस्या,
तन को सुखाऊँगी,
मैं जोगन बन जाउंगी।।
ऋषि मुनियों के आश्रम जाके,
खोज लगाउंगी,
अंदर बाहिर सब जग ढूंढूं,
नहीं अटकाउंगी,
जोगन बन जाउंगी।।
निशदिन उनका ध्यान लगाकर,
दर्शन पाउंगी,
‘ब्रम्हानंद’ पिया घर लाकर,
मंगल गाउंगी,
मैं जोगन बन जाउंगी।।
पिया मिलन के काज आज,
जोगन बन जाउंगी।।
स्वर – रमेश दाधीच।
रचना – श्री ब्रम्हानंद जी।
प्रेषक – रत्नेश सुथार।