हाथों की हथकड़ी पाँव की बेड़ियाँ खुल गए खुद ही ताले मजा आ गया

हाथों की हथकड़ी पाँव की बेड़ियाँ खुल गए खुद ही ताले मजा आ गया
कृष्ण भजनफिल्मी तर्ज भजनलक्खा जी भजन

हाथों की हथकड़ी,
पाँव की बेड़ियाँ,
खुल गए खुद ही ताले,
मजा आ गया।।

तर्ज – मेरे रश्के कमर।



श्लोक -धरम का लोप होकर जब,

पापमय संसार होता है,
दुखी और दीन निर्बल का,
जब हाहाकार होता है,
प्रभु के भक्तो पर जब,
घोर अत्याचार होता है,
तभी संसार मे भगवान का,
अवतार होता है।



हाथों की हथकड़ी,

पाँव की बेड़ियाँ,
खुल गए खुद ही ताले,
मजा आ गया,
हाथो की हथकड़ी,
पाँव की बेड़ियाँ,
खुल गए खुद ही ताले,
मजा आ गया,
बातों ही बात में,
भादों की रात में,
प्रकटे जब मुरली वाले,
मजा आ गया।।



नभ से बरसे सुमन,

श्याम बन गए ललन,
खेल हो गए निराले,
मजा आ गया,
थे सिपाही खड़े,
द्वार पे जो अड़े,
सो गए पहरे वाले,
मजा आ गया।।



देवकी डर रही,

ठंडी आह भर रही,
माँ के दुःख दर्द मिटा दे,
मजा आ गया,
लेके वसुदेवजी,
कृष्ण को चल पड़े,
टोकरी में उठाए,
मजा आ गया।।



सांवली छवि छटा,

छाई नभ पे घटा,
मेघ गरजे जो काले,
मजा आ गया,
उतरे जमुना में जब,
डरे वसुदेव तब,
चूमे जमुना चरण तो,
मजा आ गया।।



पहुंचे गोकुल किशन,

माँ यशोदा प्रसन्न,
‘लख्खा’ देता बधाई,
मजा आ गया,
पालने में पड़ा,
पालनहारी हरी,
नन्द बाबा कहे की,
मजा आ गया।।



हाथों की हथकड़ी,

पाँव की बेड़ियाँ,
खुल गए खुद ही ताले,
मजा आ गया,
हाथो की हथकड़ी,
पाँव की बेड़ियाँ,
खुल गए खुद ही ताले,
मजा आ गया,
बातों ही बात में,
भादों की रात में,
प्रकटे जब मुरली वाले,
मजा आ गया।।


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