फर्क बड़ा है प्रेमी,
और राजा में कान्हा,
सुनो द्वारिकाधीश,
बताये तेरी राधा।।
गोकुल का कान्हा प्रेमी था,
जो प्रेम में हँसके मिट जाता,
औरों को मिटाकर राज करे,
अब वो ही राजा कहलाता,
प्रेम की भाषा क्या,
समझे जानेगा राजा,
सुनो द्वारिकाधीश,
बताये तेरी राधा।।
यमुना का मीठा पानी भी,
तुझको को तो रास नहीं आया,
सागर के किनारे आ पहुंचा,
खारा पानी हिस्से आया,
तुम भूल गए हम तुमको,
ना भूले है कान्हा,
सुनो द्वारिकाधीश,
बताये तेरी राधा।।
जिस ऊँगली पे मुरली सजती,
अब चक्र सुदर्शन सजता है,
प्रेमी तो रक्षक होता है,
राजा महाभारत रचता है,
युद्ध ही भाए प्रेम,
उसे बिलकुल ना भाता,
सुनो द्वारिकाधीश,
बताये तेरी राधा।।
मैं प्रेम पुजारन हूँ प्यारे,
मेरी तो बस पहचान यही,
तुमने गीता सा ग्रंथ दिया,
जिसमे मेरा कही नाम नहीं,
मगर समापन पे,
जग राधे राधे गाता,
सुनो द्वारिकाधीश,
बताये तेरी राधा।।
वो छवि द्वारिकाधीश की तुम,
बस ढूंढ़ते ही रह जाओगे,
हर मंदिर में तुम खड़े प्रिये,
मेरे साथ नजर ही आओगे,
‘हर्ष’ प्रेम ही दुनिया,
में है पूजा जाता,
सुनो द्वारिकाधीश,
बताये तेरी राधा।।
फर्क बड़ा है प्रेमी,
और राजा में कान्हा,
सुनो द्वारिकाधीश,
बताये तेरी राधा।।
स्वर – प्रतिमा सिंह।
प्रेषक – देवेंद्र शर्मा।








