गुरु सम दाता नाही जगत के माही,
मैंने देखा खूब विचार झूठ रति नाहीं।।
पढ़ो चाहे वेद पुराण लिखी रघुराई,
सतगुरु की महिमा भागवत से अधिकाई।।
करो चाहे दान अपार तीर्थ सब नहाई,
सतगुरु बिन होवे ना मोक्ष भरम नहीं जाई।।
महा मुनि सुखदेव नारद की भाई,
सतगुरु बिन अटकी नाव भंवर के माही।।
गुरु बिन बहू दुःख मिटे जीव का नाहीं,
पद गावे जीवाराम मगन मन माही।।
गुरु सम दाता नाही जगत के माही,
मैंने देखा खूब विचार झूठ रति नाहीं।।
गायक – मनोहर परसोया किशनगढ।