सारो जगत छोड र आवियो बाबाजी हूं तो थां रै द्वार

सारो जगत छोड र आवियो बाबाजी हूं तो थां रै द्वार

सारो जगत छोड र आवियो,
बाबाजी हूं तो, थां रै द्वार,
हारया रा साथी, साथ निभा दे रे,
दुखियारो द्वारै हिवड़ै ऴगा ऴे रे।।

तर्ज – सुपणो जगायी आधी रात।



काळजड़ो तो म्हां रो, घणो दुःख पावै,

याद करूं तो नैणां भर-भर आवे,
घर का नै टोया, टोया गांव का
कोई ना दियो रे म्हां रो साथ
दीनों रा दाता हाथ बढ़ा दे रे
दुखियारो द्वारै हिवड़ै लगा ले रे ।।(१)।।



काळी-काळी बदळी आ सिर पै गरजै,

चिमकै बिजुरिया तो हियो म्हां रो धड़कै।
बाट उडिकै टाबर एऽकऴो
छायी अंधियारी काळी रात
भगतां रा भीड़ी, भीड़ डटा दे रे
दुखियारो द्वारै हिवड़ै लगा ले रे ।।(२)।।



भणक पड़ी जद काण़ां प्रभु कै,

द्वारै खड्यो ऴीऴो घोड़ो धड़ूकै।
हांक रिया ऴीऴो घोड़ऴियो
मोर छड़ी लियां हाथ
म्हां रो बाबुऴ म्हां स्यूं मिऴबा नै आयो छै
भगतां रो भीड़ी मिऴबा नै आयो छै ।।(३)।।



दीण़-दु:खी नै बाबो हिवड़ै ऴगाकै,

मत घबरावै बोऴ्यो धीर बंधाकै।
हाथ फिरावै सिर पर सांवरो
लीण़्हों रे काळजड़ै ऴगाय
म्हां रो बाबो म्हां रो माण़ बढायो छै
म्हां रो बाबो आ कै लाड लडायो छै ।।(४)।।



सारो जगत छोड र आवियो,

बाबाजी हूं तो, थां रै द्वार,
हारया रा साथी, साथ निभा दे रे,
दुखियारो द्वारै हिवड़ै ऴगा ऴे रे।।

स्वर – संजू शर्मा जी।
प्रेषक – विवेक अग्रवाऴ जी।
9038288815


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