ये तन कीमती है,
मगर है विनाशी,
कभी अगले क्षण के,
भरोसे ना रहना,
निकल जाएगी छोड़,
काया को पल में,
सदा श्वास धन के,
भरोसे ना रहना।।
एक क्षण में योगी,
एक क्षण में भोगी,
पल भर में ज्ञानी,
पल में वियोगी,
बदलता जो क्षण क्षण,
में है वृत्ति अपनी,
सदा अपने मन के,
भरोसे ना रहना।।
हम सोचते काम,
दुनिया के करले,
धन धाम अर्जित,
कर नाम कर ले,
फिर एक दिन बन,
के साधु रहेंगे,
उस एक दिन के,
भरोसे ना रहना।।
तुमको जो मेरा,
मेरा कहेंगे,
जरूरी नहीं है वो भी,
तेरे रहेंगे,
मतलब से मिलते है,
दुनिया के साथी,
सदा इस मिलन के,
भरोसे ना रहना।।
‘राजेश’ अर्जित,
गुरु ज्ञान कर लो,
या प्रेम से राम,
गुणगान कर लो,
अथवा श्री राम नाम,
रटो नित नियम से,
किसी अन्य गुण के,
भरोसे ना रहना।।
ये तन कीमती है,
मगर है विनाशी,
कभी अगले क्षण के,
भरोसे ना रहना,
निकल जाएगी छोड़,
काया को पल में,
सदा श्वास धन के,
भरोसे ना रहना।।
स्वर – श्री राजन जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202








