जब चराता है वन वन में गऊए कैसे कह दूं कि ग्वाला नहीं है

जब चराता है वन वन में गऊए,
कैसे कह दूं कि ग्वाला नहीं है,
तुम्हारी नजरों को धोखा हुआ है,
मुरली वाला तो काला नहीं है।।



भावना जिसके मन में है जैसी,

उसने मूरत भी देखी है वैसी,
वह करोड़ों रंगों में रंगा है,
एक रंग मुरली वाला नहीं।।



दर्द ने जब प्रभु को सताया,

राधा रानी बहुत सरम खाया,
प्रेम की रोशनी आ रही है,
मुरली वाला तो काला नहीं है।।



जब सुदामा के पैरो को देखा,

हुआ ह्रदय द्रवित तब हरि का,
ये तो भगति का मोज में है,
मुरली वाला तो काला नहीं है।।



जब चराता है वन वन में गऊए,

कैसे कह दूं कि ग्वाला नहीं है,
तुम्हारी नजरों को धोखा हुआ है,
मुरली वाला तो काला नहीं है।।

प्रेषक – दुर्गा प्रसाद पटेल।
9713315873


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