धार रे अवतार गुरु आविया मेटी म्हारे दुखडा री खाण

धार रे अवतार गुरु आविया मेटी म्हारे दुखडा री खाण
राजस्थानी भजन

धार रे अवतार गुरु आविया,
मेटी म्हारे दुखडा री खाण,
दे उपदेश गुरू पार क्या भव से,
हो पृगट बताई हो वेताल,
हरी से ओ हेत लगाओ,
म्हारो रे वा मिटा गया,
सारो अभिमान वो मान से,
हरी से हेत लगायो।।



मेतो रे गुरु जी ने माणस जाणया,

जब तक रियो में अज्ञान,
ज्ञान मान मने पृगट दिखाया हो,
मारयो शब्द वालो रे बाण,
हरी से वो हेत लगायो।।



मेतो रे जाणया हरी दुर रे बसत है,

भोगियो कष्ट बेहाल,
पडदो ऊढायो रे अन्दर देखयो,
हो मंया मेरा रे आप सामी,
ओ राम वो संता।।



गंगा रे जमुना भटका गोदावरी,

खूब रे भयो हरीयन,
68त्रीत गुरु धट में बताया हो,
खूब रे पीयो जल छाण रे।।



देवनाथ को संगडो लियो हो,

गयो देव सम्मान,
राजा रे महान सिंह,
भेद बाँरो नहीं हो,
मंया मेरा धिम जल वो,
थान हरी से हेत लगायो।।



धार रे अवतार गुरु आविया,

मेटी म्हारे दुखडा री खाण,
दे उपदेश गुरू पार क्या भव से,
हो पृगट बताई हो वेताल,
हरी से ओ हेत लगाओ,
म्हारो रे वा मिटा गया,
सारो अभिमान वो मान से,
हरी से हेत लगायो।।

Upload By – Nemichand Nayak
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