लाग्या रे बाण जति लक्ष्मण के,
दोहा – सुरे बाही दंन्तली,
जा पहुंची है हड,
भाई होव सो बावड़े,
भाजे बिगाना संग।
लाग्या रे बाण जति लक्ष्मण के,
रुदन करे श्री राम भ्राता।।
भाई रे भाई की बाजू रे लक्ष्मण,
भाई जैसा नहीं और नाता,
तुझ बिन कैसे रण जितूं रे भईया,
नही बिना पंख उड़ा जाता,
लाग्यो रे बाण जति लक्ष्मण के,
रुदन करे श्री राम भ्राता।।
अयोध्या ना जाऊं यहीं मर जाऊं,
प्राण त्यागूं कर अवघाता,
कैसे जाऊं क्या बतलाऊं,
जद पुछेगी सुमित माता,
लाग्यो रे बाण जति लक्ष्मण के,
रुदन करे श्री राम भ्राता।।
प्राण प्यारी जनक दुलारी,
भाई तेरा ना नजर आता,
ये सब पुछे नगर निवासी,
कहां छौड़ा तूने रघुनाथा,
लाग्यो रे बाण जति लक्ष्मण के,
रुदन करे श्री राम भ्राता।।
कहे पवन पुजारी हनुमंत ने विचारी,
ल्यायो संजीवन रातों रातां,
घोल पिलाई उठ मिले दोनों भाई,
बलवन्त राम भजन गाता,
लाग्यो रे बाण जति लक्ष्मण के,
रुदन करे श्री राम भ्राता।।
गायक – समुन्द्र चेलासरी।
मो – 8107115329
लेखक – बलवन्त राम लौट।
प्रेषक – मनीष कुमार लौट।








