खोजते खोजते एक सहारा,
तेरे बंदों का पाकर इशारा,
आके दर पे खड़ा हो गया हूं,
की मिलेगा यहां पर सहारा।।
दे सका ना कोई दर सहारा,
देखे दर इस जहां के हजारों,
दिल में ही रह गई दिल की हसरत,
बस भटकता फिरा मारा मारा,
आके दर पे खड़ा हो गया हूं,
की मिलेगा यहां पर सहारा।।
एक ही दर है ऐसा जहां में,
खाली जाता ना कोई जहां से,
तेरे बंदो ने है ये बताया,
सबका होता वहां पर गुजारा,
आके दर पे खड़ा हो गया हूं,
की मिलेगा यहां पर सहारा।।
तेरा जाना ही काफी वहां है,
तेरे बंदों ने यह भी बताया,
नहीं कहने की कुछ भी जरूरत,
उनको मालूम है हाल सारा,
आके दर पे खड़ा हो गया हूं,
की मिलेगा यहां पर सहारा।।
सुन के शोहरत तेरी आ गया हूं,
आजमाने को अपनी भी किस्मत,
फर्ज पूरा किया मैंने अपना,
फर्ज पूरा करो जो तुम्हारा,
आके दर पे खड़ा हो गया हूं,
की मिलेगा यहां पर सहारा।।
मैंने माना कि मुझमें कसर है,
तेरा वादा भी क्या बेअसर है,
उसका थोड़ा सा भी ख्याल करते,
एक कश्ती को मिलता किनारा,
आके दर पे खड़ा हो गया हूं,
की मिलेगा यहां पर सहारा।।
गर है इन्कार तो है गुजारिश,
अपने दर सा कोई दर बता दो,
ताकि ‘प्रताप’ को फिर वहां से,
कहीं जाना पड़े ना दुबारा,
आके दर पे खड़ा हो गया हूं,
की मिलेगा यहां पर सहारा।।
खोजते खोजते एक सहारा,
तेरे बंदों का पाकर इशारा,
आके दर पे खड़ा हो गया हूं,
की मिलेगा यहां पर सहारा।।
स्वर – श्री प्रेमभूषण जी महाराज।
लेखक – प्रताप जी।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202








