प्रभु चाह में चाह मिलाने को,
भगवान की भक्ति कहते है।।
आंखों में बरसते हो आंसू,
और अधरों पर मुस्कान रहे,
एक संग में रोने गाने को,
भगवान की भक्ति कहते है,
प्रभु चाह मे चाह मिलाने को,
भगवान की भक्ति कहते है।।
जीवन की अंधेरी रातों में,
दुख द्वंद भरे तूफानों में,
विश्वास का दीप जलाने को,
भगवान की भक्ति कहते है,
प्रभु चाह मे चाह मिलाने को,
भगवान की भक्ति कहते है।।
जिसमें सुख दिखता मिलता नहीं,
राजेश्वर ऐसे जीवन को,
तर कर दे इसी तराने को,
भगवान की भक्ति कहते है,
प्रभु चाह मे चाह मिलाने को,
भगवान की भक्ति कहते है।।
प्रभु चाह में चाह मिलाने को,
भगवान की भक्ति कहते है।।
स्वर – श्री अंकुश जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202