छोड़ बैठा है सारा जमाना मुझे,
नाथ अब आप हीं दो ठिकाना मुझे।।
पातकों की घटा घोर घमसान है,
और खल सिन्धु का बेग बलवान है,
काम मद क्रोध माया का तूफ़ान है,
देह जलयान का जीर्ण सामान है,
चाहते है ये मिलकर डुबाना मुझे,
नाथ अब आप ही दो ठिकाना मुझे।।
क्या तुम्हें दीन गज ने पुकारा नहीं,
क्या दुखी गीध था तुमको प्यारा नहीं,
क्या यवन पिंगला को उबारा नहीं,
क्या अजामिल अधम तुमने तारा नहीं,
फिर बताते हो क्यों कर बहाना मुझे,
नाथ अब आप हीं दो ठिकाना मुझे।।
किस के कदमों पर नीचा सिर मैं करूँ,
आह का किस के दिल पर असर मैं करूँ,
किसका घर है जिस पर मैं घर करूँ,
अश्रु के ‘बिदु’ किसकी नज़र मैं करूँ,
आखरी ये है विनती सुनाना मुझे,
नाथ अब आप हीं दो ठिकाना मुझे।।
छोड़ बैठा है सारा जमाना मुझे,
नाथ अब आप हीं दो ठिकाना मुझे।।
स्वर – पं. मोहन श्याम जी।
रचना – श्री बिंदु जी महाराज।
प्रेषक – जितेंद्र कृष्ण पराशर।
8059613016