आओ आओ जी,
गजानन्द आओ जी,
तेरी महिमा अपार,
होके मूसे पे सवार,
संग रिद्धि-सिद्धि को,
भी लाओ जी।।
तर्ज – चली चली रे पतंग मेरी।
पहले हम तुमको मनाते,
हे देवों के महाराजा,
हे बल बुद्धि के दाता,
आज सिद्ध करो मेरे काजा,
माथे तिलक सजाओ,
अब देर ना लगाओ,
आक मोदक,
भोग लगाओ जी,
आओ-आओ जी,
गजानन्द आओ जी।।
मस्तक पे मुकुट बिराजे,
सोहे गले मोतियन की माला,
कानों में कुण्डल सोहे,
गनपत के नयन विशाला,
तुम्हें याद करे,
फरियाद करे,
आके भक्तों का,
मान बढ़ाओ जी,
आओ-आओ जी,
गजानन्द आओ जी।।
हे विघ्न विनाशक स्वामी,
तेरा सुन्दर रूप निराला,
शिव पार्वती के प्यारे,
हो इस जग के रखवाला,
कोई तुमसा न दूजा,
करें हम तेरी पूजा,
सब मिल गनपत,
को मनाओ जी,
आओ-आओ जी,
गजानन्द आओ जी।।
हे लम्बोदर गणनायक,
है आप बड़े बलकारी,
अब तेरे ही हाथों में,
है अब तो लाज हमारी,
करुँ विनती गणेश,
हरो सबके कलेश,
‘परशुराम’ के भी,
कष्ट मिटाओ जी,
आओ-आओ जी,
गजानन्द आओ जी।।
आओ आओ जी,
गजानन्द आओ जी,
तेरी महिमा अपार,
होके मूसे पे सवार,
संग रिद्धि-सिद्धि को,
भी लाओ जी।।
गायक – सौरभ उपाध्याय।
लेखक – परशुराम जी उपाध्याय।
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श्रीमानस मण्डल वाराणसी।