तोसे अरज करूँ साँवरिया,
दोहा – मन लोभी मन लालची,
मन चंचल मन चोर,
मन के मते ना चालिए,
पलक पलक मन और।
दीन कहे धनवान सुखी,
धनवान कहे सुख राजा को भारी,
राजा कहे महाराजा सुखी,
महाराजा कहे सुख इंद्र को भारी,
इंद्र कहे ब्रम्हा जी सुखी,
ब्रह्मा कहे सुख विष्णु को भारी,
तुलसीदास विचार करे,
हरि भजन बिना सब जीव दुखारी।
तोसे अरज करूँ साँवरिया,
मोसे मन नहीं जित्यो जाय।।
मन मेरा यह चंचल भारी,
छिन छिन लेवे राड़ उधारी,
तोड़ फेंक दे ज्ञान पिटारी,
ना कछु पार बसाय,
तोसे अरज करूं सांवरिया,
मोसे मन नहीं जित्यो जाय।।
मन मेरा यह चंचल घोड़ा,
सत्संग का मानत नहीं कोड़ा,
ज्ञान ध्यान का लंगर तोड़ा,
पल पल में हिन हिनाय,
तोसे अरज करूं सांवरिया,
मोसे मन नहीं जित्यो जाय।।
मन हाथी काबू नहीं मेरे,
न्हाय धोय सिर धूल बखेरे,
महावत को भी नीचा गेरे,
जरा नहीं भय खाय,
तोसे अरज करूं सांवरिया,
मोसे मन नहीं जित्यो जाय।।
कैसे राखूँ मन को बस में,
मन कर रक्खा मुझको बस में,
’तुलसी’ का मन विषय कुरस में,
पल पल में ललचाय,
तोसे अरज करूं सांवरिया,
मोसे मन नहीं जित्यो जाय।।
तोसे अरज करूं सांवरिया,
मोसे मन नहीं जित्यो जाय।।
स्वर – रमेश जी दाधीच।