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श्री यमुनाजी के 41 पद हिंदी में लिखित

Shekhar Mourya by Shekhar Mourya
27/08/2022
in आरती संग्रह
0
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श्री यमुनाजी के 41 पद,

पद संख्या 1

पिय संग रंग भरि करि कलोले,
सबन को सुख देन,
पिय संग करत सेन,
चित्त में तब परत चेन जबही बोले।
अतिहि विख्यात,
सब बात इनके हाथ,
नाम लेत ही कृपा करी अतोले,
दरस करी परस करी ध्यान हिय में धरे,
सदा ब्रजनाथ इन संग में डोले।

अतिही सुख करन दुख सबन के हरन,
यही लीनो परन दे जु कोले,
ऐसी श्री यमुने जान तुम करो गुणगान,
‘रसिक’ प्रितम पाये नग अमोले।।



पद संख्या 2

श्याम सुखधाम जहां नाम इनके,
निशदिना प्राणपति आय हिय में बसे,
जोई गावे सुजस भाग्य तिनके।
यही जग मे सार कहत वारंवार,
सबन के आधार धन निर्धनन के,
लेत श्री यमुने नाम,
देत अभय पद दान,
‘रसिक’ प्रितम-पिया बस जु इनके।।



पद संख्या 3

कहत श्रुति सार निर्धार करके,
इन बिना कौन,
ऐसी करे हे सखी,
हरत दुख द्वन्द सुखकन्द बरखे।

ब्रह्मसम्बन्ध जब होत या जीव को,
तब ही इनकी भुजा वाम फरके,
दोरकर सोर कर जाय पिय सो कहे,
अतिही आनंद मन में जु हरखे।

नाम निरमोल नग ले कोउ न सके,
भक्त राखत हिये हार करके,
‘रसिक’ प्रितम जु कि होत जा पर कृपा,
सोई श्री यमुनाजी को रुप परखे।।



पद संख्या 4

नेन भर देख, अब भानु तनया,
केलि पिय सो करे, भ्रमर तब हि परे,
श्रमजल भरत, आनंद मनया।

चलत टेढी होय, लेत पिय को मोही,
इन बिना रहत नही एक छीनया,
‘रसिक’ प्रितम रास, करत श्री यमुना पास,
मानो निर्धनन कि हे जु धनया।।



पद संख्या 5

स्याम संग स्याम, वे रही श्री यमुने,
सूरत श्रम बिंदुते, सिन्धु सी बही चली,
मानो आतुर अली, रही न भवने।

कोटि कामही वारो,रुप नैनन निहारो,
लाल गिरिधरन, संग करत रमने,
हरखि ‘गोविंद’ प्रभु निरखी इनकि ओर,
मानो नव दुल्हनी आई गोने।bd।



पद संख्या 6

चरण पंकज रेणु श्री यमुने जु देनी,
कलियुग जीव उधारन कारन,
काटत पाप अब धार पेनी।

प्राणपति प्राण-सुत,आये भक्तन हित,
सकल सुख कि तुम हो जु श्रेनी,
‘गोविंद’प्रभु बिना रहत नही एक छिनु,
अति ही आतुर चंचल जु नैनी।।



पद संख्या 7

श्री यमुना सी नाही कोई और दाता,
जो इनकी शरण जात है दोरके,
ताहिको तिहि छिनु कर सनाथा।

येहि गुणगान रसखान रसना एक,
सहस्त्र रसना क्यों न दई विधाता,
‘गोविंद’प्रभु तन, मन, धन वारने,
सबहीको जीवन इनही के जु हाथा।।



पद संख्या 8

श्री यमुना जस जगत मे जोई गावे,
ताके आधिन व्हे रहत है प्राणपति,
नेन अरु बेनमे रस जु छावे।

वेद पुराण ते बात यह अगम है,
प्रेम को भेद कोउ न पावे,
कहत ‘गोविंद’ श्री यमुने कि जा पर,
कृपा सोई श्रीवल्लभ कुल शरण आवे।।



पद संख्या 9

धाय के जाय जो श्री यमुना तीरे,
ताकि महिमा अब कहां लग बरनिये,
जाय परसत अंग प्रेम-नीरे।

निशदिना केली करत मनमोहन,
पिया संग भक्तन कि हे जु भीरे,
‘छितस्वामी’ गिरिधरन श्री विट्ठल,
इन बिना नेक नही धरत धीरे।।



पद संख्या 10

जा मुखते श्री यमुने यह नाम आवे,
ता पर कृपा करे श्री वल्लभ प्रभु,
सोई श्री यमुनाजी को भेद पावे।

तन, मन, धन सब लाल गिरिधरनको,
देके चरण जब चित्त लावे,
‘छितस्वामी’ गिरिधरन श्री विट्ठल,
नैनन प्रगट लीला दिखावे।bd।



पद संख्या 11

धन्य श्री यमुने निधि देनहारी,
करत गुणगान, अग्यान -अघ दूर करी,
जाय मिलवत पिय प्राण प्यारी।

जिन कोउ संदेह करो बात चित्तमे धरो,
पुष्टि पथ अनुसरो सुख जु कारी,
प्रेम के पुंज मे रास रस कुंजमे,
ताही राखत रस रंग भारी।।

श्री यमुने अरु प्राणपति,
प्राण अरु प्राण सुत,
चहु जन जीव पर दया विचारी,
‘छितस्वामी’ गिरिधरन श्री विट्ठल,
प्रीत के लिये अब संग धारी।।



पद संख्या 12

गुण अपार मुख एक, कहालों कहिये,
तजो साधन भजो श्री यमुनाजीको,
लाल गिरिधरनवर तबही पैये।

परम पुनित प्रीतकि रीत सब जानके,
द्रढ करी चरण कमल जु ग्रहीये,
‘छितस्वामी’ गिरिधरन श्री विट्ठल,
ऐसी निधि छान्ड अब कहां जु जैये।।



पद संख्या 13

चित्त मे श्री यमुना निशदिन जु राखो,
भक्त के वश, कृपा करत है सर्वदा,
ऐसो श्री यमुनाजीको है साखो।

जा मुख ते श्री यमुने यह नाम आवे,
संग किजे अब जाय ताको,
‘चत्रभुजदास’ अब कहत है सबनसों,
तांते श्री यमुने श्री यमुने जु भाखो।।



पद संख्या 14

प्राणपति विहरत श्री यमुना फुले,
लुब्ध मकरंद के, भ्रमर ज्यों बस भये,
देख रवि उदय, मानो कमल फुले।

करत गुंजार मुरली जु ले सांवरो,
सुनत व्रजवधू, तन सुध जु भूले,
‘चत्रभुजदास’ यमुने प्रेम सिन्धुमे,
लाल गिरिधरन वर हरखि झुले।।



पद संख्या 15

वारंवार श्री यमुने गुणगान किजे,
येहि रसनाते भजो नाम-रस-अमृत,
भाग्य जाके हे सोई जु पीजे।

भानु-तनया दया अतिही करुणामया,
इनकी कर आश,
अब सदा ही जीजे,
‘चत्रभुजदास’ कहे सोई प्रिय पास रहे,
जोई श्री यमुनाजीके रस जु भींजे।bd।



पद संख्या 16

हेत करी देत श्री यमुने वास कुंजे,
जहां निशवासर रास में रसिकवर,
कहांलो बरनिये प्रेम पुंजे।

थकित सरिता-नीर थकित व्रजवधू भीर,
कोऊ न धरत धीर,
मुरली सुनीजे।
‘चत्रभुजदास’ यमुने पंकज जानि,
मधुपकी नांई चित्त लाय गुंजे।।



पद संख्या 17

भक्त पर करि कृपा श्री यमुने जु ऐसी,
छान्ड निज धाम विश्राम भुतल कियो,
प्रकट लीला दिखाई जु तैसी।

परम परमारथ करत है सबनको,
देत अद्भुत रुप आप जैसी,
‘ नंददास’ यो जानी द्रढ करी चरण ग्रहे,
एक रसना कहा कहे विशेषी।।



पद संख्या 18

नेह कारण श्री यमुने जु प्रथम आयी,
भक्त के चित्त कि व्रुत्ति सब जानके,
तहांते अतिही आतुर जु धाई।

जाके मन जैसी इच्छा हति ताहीकि,
तैसीही आय साध जु पूजाई,
‘नंददास’ ता पर प्रभु रीझि रहे,
जोई श्री यमुनाजी को जश जु गायी।bd।



पदसंख्या 19

तांते श्री यमुने यमुने जु गाओ,
शेष सहस्त्रमुख निश दिन गावत,
पार नही पावत ताही पाओ।

सकल सुख देनहार तांते करो उच्चार,
कहत वारंवार जिन भुलाओ,
‘नंददास’कि आस श्री यमुने पुरन करी,
तांते घरी घरी चित्त लाओ।।



पद संख्या 20

भाग्य सौभाग्य श्री यमुने जु देई,
बात लौकीक तजो, पुष्टि यमुने भजो,
लाल गिरिधरनवर तब मिलेई।

भग्वदिय संग कर बात इनकी लहे,
सदा सानिध्य रहे केलि मेई,
‘नंददास’ जा पर कृपा श्री वल्लभ करे,
ताके श्री यमुने सदा जु हेई।।



पद संख्या 21

नाम महिमा ऐसो जु जानो,
मर्यादादिक कहे, लौकीक सुख लहे,
पुष्टि को पुष्टि पथ निश्चय मानो।

स्वाति जल बुंद जब परत है जाहि मे,
ताहिमे होत तैसो जु बानो,
श्री यमुने कृपासिन्धु जानी,
स्वाति जल बहुमानि,
‘सुर’ गुण पुर, कहांलो बखानों।।



पद संख्या 22

भक्त को सुगम, श्री यमुने अगम ओरें,
प्रात:ही नहात, अघ जात ताके सकल,
यमहुं रहत ताहि हाथ जोरे।

अनुभवि बिना अनुभव कहा जा नही,
जा को पिया नही चित्त चोरे,
प्रेमके सिन्धुको मरम जान्यो नही,
‘सुर’ कहे, कहा भयो देह बोरे।।



पद संख्या 23

फल फलित होय फलरूप जाने,
देखीहुं ना सुनी, ताहीकी आपुनी,
काहुकी बात कोऊ कैसे जु माने।

ताके हाथ निरमोल नग दिजीये,
जोई नीके करि परखि जाने,
‘सुर’ कहे क्रूरतें दूर बसीये सदा,
श्री यमुनाजी को नाम लिजे जु छाने।।



पद संख्या 24

श्री यमुने पति दास के चिन्ह न्यारे,
भगवदियो कों भगवत्संग मिली रहत है,
जा के हिय बसत प्राण प्यारे।

गुढ श्री यमुने बात सोई अब जानही,
जा के मनमोहन नैन तारे,
‘सुर’ सुखसार निरधार वे पावही,
जा पर होय श्री वल्लभ कृपा रे।bd।



पद संख्या 25

श्री यमुने रसखानको शिष नांऊ,
ऐसी महिमा जान, भक्तको सुखदान,
जोइ मागो सोई जु पाऊ।

पतित पावन करन नाम लिनो तरन,
द्रढ कर गहि चरण, कहुं न जाऊ,
‘कुंभनदास’ लाल गिरिधरन मुख निरखत,
यही चाहत, नही पलक लाऊ।।



पद संख्या 26

श्री यमुने अगनित गुण गिने न जाई,
यमुने तट रेणु तें होत है नवीन तनु,
इनके सुख देनकी, कहा करों बडाई।

भक्त मांगत जोई, देत है तिहि छिनु,
सो ऐसी को, करे प्रण निवाई,
‘कुंभनदास’ लाल गिरिधरन मुख निरखत,
कहो कैसे करि मन अघाई।।



पद संख्या 27

श्री यमुने पर तन, मन, धन प्राण वारों,
जाकी कीर्ति विसद,
कौन अब कही सके,
ताहि नैननतें न नेक टारों।

चरणकमल इनके जु चिंतत रहो,
निशदिना नाम मुख तें उच्चारो,
‘कुंभनदास’कहे, लाल गिरिधरन मुख,
इनकी कृपा भई तब निहारो।bd।



पद संख्या 28

भक्त इच्छा पुरन श्री यमुने जु करता,
बिना मांगे हु देत, कहां लो कहे हेत,
जैसे काहुको कौऊ होय धरता।

श्री यमुना पुलिन रास,
व्रज वधू लिये पास,
मंद मंद हास कर मन जु हरता,
‘कुंभनदास’लाल गिरिधरन मुख निरखत,
यही जिय देखत श्री यमुने जु भरता।।



पद संख्या 29

रास रस सागर श्री यमुने जु जानी,
बहत धारा तन प्रति छिन नौतन,
राखत अपने उरमे जु ठानी।

भक्त को सहे भार, देत जु प्राण आधार,
अतिही बोलत मधुर मधुर बानी,
‘श्री विट्ठल’ गिरिधरन वर बस किये,
कौन पे जात महिमा बखानी।bd।



पद संख्या 30

भक्त प्रतिपाल, जंजाल टारे,
अपने रस रंग मे, संग राखत सदा,
सर्वदा जोइ श्री यमुने नाम उच्चारे।।

इनकी कृपा अब कहां लग बरनिये,
जैसे राखत जननी पुत्र बारे,
‘श्री विट्ठल ‘ गिरिधरन संग विहरत,
भक्तों को एक छीन ना बिसारे।।



पदसंख्या 31

कोन पें जात श्री यमुने जु बरनी,
सबही को मन मोहत मोहन,
सो पियाको मन हे जु हरनी।।

इन बिना एक छिन, रहत नही जीवन धन,
ब्रजचंद मन आनंद करनी,
‘श्रीविट्ठल’ गिरिधरन संग आय,
भक्त के हेत अवतार धरनी।bd।



पद संख्या 32

श्री यमुनाजीको नाम ले सोई सुहागी,
इनके स्वरूपको सदा चिंतन करत,
कल न परत, जाय लेह लागी।

पुष्टि मारग मरम, अतिहि दुर्लभ,
करम छान्ड सगरे, परम प्रेम पागी,
‘श्री विट्ठल’ गिरिधरन ऐसी निधि,
भक्तकों देत है बिना मागी।।



पद संख्या 33

श्री यमुना के नाम अघ दूर भाजे,
जिन के गुण सुननकों,
लाल गिरिधरन पिय,
आय सन्मुख ताके बीराजे।

तिहि छिनु काज ताके सगरे सरे,
जाय के मिलत व्रजवधू समाजे,
‘कृष्णदासनि’ कहे ताहि अब कोन डर,
जो के ऊपर श्री यमुने सी गाजे।।



पद संख्या 34

श्री यमुनाजी को नाम तेई जु लेहें,
जाकी लगन लगी नंदलाल सों,
सर्वस्व देकें निकट रहे है।

जिनहीं सुगम जानी, बातमें जुमानी,
बिना पेहचानि कैसे जु पैये,
‘कृष्णदासनि’ कहे श्री यमुने नामनौका,
भक्त भव सिन्धु तें योहिं तरिये।bd।



पद संख्या 35

श्री यमुने तुमसी एक हो जु तुमही,
करी कृपा दरस निसवासर दीजिये,
तिहारे गुणगानन कों रहे उध्यमही।

तिहारे पायेंते, सकल निधि पावही,
चरण कमल चित्त भ्रमर भ्रमही,
‘कृष्णदासनि’ कहे, कौन यह तप कियो,
तिहारे ढिंग रहत है लता द्रुमही।।



पद संख्या 36

ऐसी कृपा किजिये लिजिये नाम,
श्री यमुने जग वंदनी,
गुण न जात काहुगिनी,
जिनके ऐसे धनी सुंदर श्याम।

देत संयोग रस ऐसे पियु हे जु बस,
सुनत तिहारो सुजश, पूरे सब काम,
‘कृष्णदासनि’कहे भक्त हित कारने,
श्री यमुने एक छिनु नही करे विश्राम।।



पद संख्या 37

श्री यमुने के साथ अब फिरत है नाथ,
भक्तके मनके,
मनोरथ पुरन करत,
कहां लो कहीये इनकी जु गाथ।

विविध श्रुंगार आभूषण पहरे,
अंग अंग शोभा, बरनी न जात,
‘दास परमानंद’ पाये अब ब्रजचंद,
राखे अपने शरण, बहे जु जात।bd।



पद संख्या 38

श्री यमुने की आश अब करत है दास,
मन-कर्म-वचन कर जोरि के मांगत,
निशदिना राखिये, अपने जु पास।

जहां पिय रसिकवर, रसिकनि राधिका,
दोउ जन, संग मिल करत है रास,
‘दास परमानंद’ पाये अब ब्रजचंद,
देखी सिराने, नेन मंद हास।।



पद संख्या 39

श्री यमुने पियकों, बस तुम जु किने,
प्रेम के फंदते, ग्रहि जु राखे निकट,
ऐसे निरमोल, नग मोल लिने।

तुम जुपठावत, तहां अब धावत सदा,
तिहारे रस रंगमें, रहत भीने,
दास ‘परमानंद’ पाये अब ब्रजचंद,
परम उदार श्री यमुने जुदा न दीने।।



पद संख्या 40

श्री यमुने सुखकारनी प्राणपतिके,
जिन्हे भूली जात पिय,
तिन्हे सुधि करी देत,
कहां लो कहीये इनके जु हितके।

पिय संग गान करे उमंगी ज्यों रस भरे,
देत तारी कर लेत झटके,
दास ‘परमानंद’ पाये अब ब्रजचंद,
ये हि जानत सब प्रेम गतिके।bd।



पद संख्या 41

शरण प्रतिपाल गोपाल रति वर्धिनी,
देत पति पंथ, प्रिय कंथ सन्मुख करत,
अतुल करुणामयी नाथ अंग अर्धिनी।

दीन जन जान रस पुंज कुंजेश्वरी,
रमत रस रास पिय संगनिश-शरदनी।

भक्तिदायक सकल भवसिंधु तारिणी,
करत विध्वंश जन अखिल अघ मर्दिनी।

रहत नंद सुनु तट निकट निशदिन सदा,
गोप गोपी रमत मध्य रसकंदनी,
कृष्ण तन वर्ण, गुण धर्म श्री कृष्णके,
कृष्ण लीला मयी, कृष्ण सुख कंदनी।

पद्मजा पाय, तू संग ही मुररिपु,
सकल सामर्थ्यमयी, पाप की खंडनी,
कृपा रस पूर, वैकुंठ पद कि सिढि,
जगविख्यात, शिव शेष शिर मंडनी।

पर्योपद कमल तर, और सब छान्ड के देख,
द्रढ कर दया, हास्य मुख मंदनी,
उभय कर जोर ‘कृष्णदास’ विंनंति करे,
करो अब कृपा कलिन्द गिरि नंदिनी।bd।

श्री यमुनाजी के 41 पद सम्पूर्ण।


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