राजा भरथरी से अरज करे,
महलो में खड़ी महारानी,
राज पाट तज बन गया जोगी,
ये क्या दिल में ठानी।।
नगर उज्जैन के राजा भरथरी,
हो घोड़े असवार,
एक दिन राजा दूर जंगल में,
खेलन गए शिकार,
बिछड गए जब संग के साथी,
राजा भये लाचार,
किस्मत ने जब करवट बदली,
छुटा दिए घर बार,
अब होनहार टाली ना टले,
समझे कोनी दुनिया दीवानी,
राज पाट तज बन गया जोगी,
ये क्या दिल में ठानी।।
काला सा एक मिरग देखकर,
तीर ताण कर मारा,
तीर कलेजा चीर गया,
मृग धरणी पे पड़ा बेचारा,
व्याकुल होकर हिरणी बोली,
ओ पापी हत्यारा,
मिरगे के संग में सती होवांगी,
हिरणी का डाह पुकारा,
रो रो के फ़रियाद करे,
राजा भये अज्ञानी,
राज पाट तज बन गया जोगी,
ये क्या दिल में ठानी।।
राजा जंगल में रुदन करे,
गुरु गोरखनाथ पधारे,
मिरगे को प्राण दान दे तपसी,
राजा का जनम सुधारे,
उसी समय में राजा भरथरी,
तन के वस्त्र उतारे,
ले गुरुमंत्र बन गया जोगी,
अंग भभूति रमाये,
घर घर अलख जगाता फिरे,
बोले मधुर वाणी,
राज पाट तज बन गया जोगी,
ये क्या दिल में ठानी।।
गुरु गोरख की आग्या भरथरी,
महलों में अलख जगाता,
भर मोतियन को थाल ल्याई दासी,
ले जोगी सुखदाता,
ना चाहिए तेरा माणक मोती,
चुठी चून की चाहता,
भिक्षा ल्यूँगा जद ड्योढ़ी पर,
आवेगी पिंघला माता,
राणी के नैना से नीर ढलें जद,
पियाजी की सुरत पिछाणी,
राज पाट तज बन गया जोगी,
ये क्या दिल में ठानी।।
भाग दोड़ के पति चरणों में,
लिपट गई महाराणी,
बेदर्दी तोहे दया नहीं आई,
सुनले मेरी कहानी,
बाली उमर नादान नाथ मेरी,
कैसे कटे जिंदगानी,
पिवजी छोडो जोग,
राज करो बोले प्रेम दीवानी,
थारे अन्न का भण्डार भरया,
थे मौज करो मनमानी,
राज पाट तज बन गया जोगी,
ये क्या दिल में ठानी।।
धुप छाव सी काया माया,
दुनिया बहता पाणी,
अमर नाम मालिक को रहसी,
सोच समझ अज्ञानी,
भजन करो भव सिन्धु तरो,
यूँ कहता ‘लिखमो’ ज्ञानी,
नई नई रंगत गावे ‘माधोसिंह’,
हवा जमाने की ज्यानी,
राम का भजन करो नर प्यारे,
तेरी दो दिन की जिंदगानी,
राज पाट तज बन गया जोगी,
ये क्या दिल में ठानी।।
राजा भरथरी से अरज करे,
महलो में खड़ी महारानी,
राज पाट तज बन गया जोगी,
ये क्या दिल में ठानी।।
गायक – रामेश्वर लाल जी सुजानगढ।
Upload By – Ashok Kumar Sharma
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