मोहन से हुआ प्यार,
पता ही नहीं चला,
कब बन गया वो यार,
पता ही नहीं चला।।
बैठे बिठाये उनसे,
नज़रें उलझ गई,
बैठे बिठाये उनसे,
नज़रें उलझ गई,
कब हुई दो से चार,
पता ही नहीं चला,
कब बन गया वो यार,
पता ही नहीं चला।।
महफिल भी थी उसी की,
और लोग भी उसी के,
महफिल भी थी उसी की,
और लोग भी उसी के,
करता गया वो वार,
पता ही नहीं चला,
कब बन गया वो यार,
पता ही नहीं चला।।
फिर भी उन्हीं में खोकर,
मुझे लुफ्त आ रहा है,
फिर भी उन्हीं में खोकर,
मुझे लुफ्त आ रहा है,
ऐसा चढ़ा खुमार,
पता ही नहीं चला,
कब बन गया वो यार,
पता ही नहीं चला।।
‘अंकुश’ तमाम बीती,
उम्रो सजर शहर,
अंकुश तमाम बीती,
उम्रो सजर शहर,
कर करके इंतजार,
पता ही नहीं चला,
कब बन गया वो यार,
पता ही नहीं चला।।
मोहन से हुआ प्यार,
पता ही नहीं चला,
कब बन गया वो यार,
पता ही नहीं चला।।
स्वर – श्री अंकुश जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202