मारा हाथा में हरियो रुमाल रे,
चाला गणगौर मेला में,
ओ मेला में मेला में,
चलो माताजी का मेला में।।
चटक मटक की चुनरी ने,
केसर वरकी कोर,
कोरा री किनारी उपर,
बैठया जीना मोर,
कर पीहू पीहू कोयलिया शोर रे,
चाला गणगौर मेला में।।
पचरंगी आगयान उपर,
पेनी जाली दार,
मैं चालू रे तारा संगे,
मारी जोड़ी रा भारदर,
मारे नाचे रे मनड़ा को मोर रे,
चाला गणगौर मेला में।।
लाल गुलाबी चुनर उपर,
बोले दादुर मोर,
मैं चलूंगी तारा संग,
ओ म्हारा सिरमौर,
मेरी सखिया भी मंगल गावे रे,
चाला गणगौर मेला में।।
मारा हाथा में हरियो रुमाल रे,
चाला गणगौर मेला में,
ओ मेला में मेला में,
चलो माताजी का मेला में।।
गायक – देवेंद्र जी मेवाड़ा।
प्रेषक – शिवम राजपूत।
9893646291