मैं गोकुल री कान्हा गुजरी,
म्हारो दही मत लूटो जी।।
अगली मटकी भयी पुरानी,
नई मटकियां लाई जी,
छींक हुई जद घर सूं निकली,
आ काई रोल मचाई रे,
मै गोकुल री काना गुजरी,
म्हारो दही मत लूटो जी।।
प्रात समय में घर से निकली,
डावो बोल्यौ काग जी,
के तो फुटे म्हारो बेवड़ो,
के मिलसी नंदलाल रे,
मै गोकुल री काना गुजरी,
म्हारो दही मत लूटो जी।।
दही को दान कदेई नहीं देहूं,
बहुत दिनों से आईं ओ,
जाय कहूं म्हारा कंस राजा ने,
उतर जावे ठकुराई ओ,
मै गोकुल री काना गुजरी,
म्हारो दही मत लूटो जी।।
दही को दान कदेई नहीं छोड़ू,
मत कर मान बढाई रे,
देखियो थारा कंस राजा ने,
बहुत करे अनिताई रे,
मै गोकुल री काना गुजरी,
म्हारो दही मत लूटो जी।।
डुंगर चढ ने करी किलकारी,
ग्वालिया ने लिया बुलाई ओ,
भर भर दुना पीवण लागा,
बाकी रो दियो ढोलाई रे,
मै गोकुल री काना गुजरी,
म्हारो दही मत लूटो जी।।
धिन गोकुल धिन मथुरा नगरी,
धिन यशौदा माई जी,
चंद्र सखी री अर्ज विणती,
चरण कमल चित लाई जी,
मै गोकुल री काना गुजरी,
म्हारो दही मत लूटो जी।।
मैं गोकुल री कान्हा गुजरी,
म्हारो दही मत लूटो जी।।
गायक – चम्पालाल सुथार नागाणा।
9694667411