खाटू में जो भी आया,
फंसता ही जा रहा है,
फंसता ही जा रहा है,
उन्हें देख देख बाबा,
हँसता ही जा रहा है,
हँसता ही जा रहा है।।
तर्ज – मौसम है आशिकाना।
बन करके ये शिकारी,
ऐसा बिछाया जाल है,
देता जवाब उनको,
जिसने किया सवाल है,
ये प्रेम का शिकंजा,
कसता ही जा रहा है,
कसता ही जा रहा है,
खाटु मे जो भी आया,
फंसता ही जा रहा है।।
एक बार जो फसा फिर,
खुद को छुड़ा ना पाया,
सारे जहा की खुशियां,
तेरे जाल में वो पाया,
वो दाने सांवरे के,
चुगता ही जा रहा है,
चुगता ही जा रहा है,
खाटु मे जो भी आया,
फंसता ही जा रहा है।।
कैसे बचेगा कोई,
कातिल तेरी निगाहे,
कहता है ‘श्याम’ तेरे,
नैनो में दिखती राहें,
नैनो का दिल पे खंजर,
धंसता ही जा रहा है,
धंसता ही जा रहा है,
खाटु मे जो भी आया,
फंसता ही जा रहा है।।
खाटू में जो भी आया,
फंसता ही जा रहा है,
फंसता ही जा रहा है,
उन्हें देख देख बाबा,
हँसता ही जा रहा है,
हँसता ही जा रहा है।।
Singer – Shubham Rupam
Upload – Gopal Goyal
9811845745