कंवर गी कला बड़ी भारी,
दोहा – आदी अनादि देवता,
श्री कंवर जी महाराज,
जीव उबारया जगत का,
कर दिया भव से पार।
कंवर गी कला बड़ी भारी,
च्यार कूंट और चौदह भवन में,
माने दुनिया सारी।।
आदीदेव देव बड़ो बंको,
भूजग फणधारी,
बाशक जी रो कंवर लाडलो,
नागण महतारी,
कंवर गी कला बडी भारी।।
तन मन से जो माने कंवर न,
आश पुरे ज्यांरी,
दुख दर्द सारा कट जावे,
अरू काटे बिमारी,
कंवर गी कला बडी भारी।।
सर्प गौयरा बांडी बिच्छू,
जीव विषधारी,
आंस्यूं कंवर जी सदा बंचावे,
निगा राखे म्हारी,
कंवर गी कला बडी भारी।।
पवन कहे इन्द्र रो साथी,
इंया सुणी न्यारी,
बलवन्त कहे भेद नही जाण्यो,
निर्गुण निराकारी,
कंवर गी कला बडी भारी।।
कंवर गी कला बड़ी भारी,
च्यार कूंट और चौदह भवन में,
माने दुनिया सारी।।
गायक – समुन्द्र चेलासरी।
मो. – 8107115329
लेखक – बलवन्त राम लौट।
प्रेषक – मनीष कुमार लौट।








