कभी फुर्सत हो तो जगदंबे निर्धन के घर भी आ जाना

कभी फुर्सत हो तो जगदंबे निर्धन के घर भी आ जाना

कभी फुर्सत हो तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।।

तर्ज – बाबुल की दुआएं।
देखे – फुर्सत मिले तो एक बार।



ना छत्र बना सका सोने का,

ना चुनरी घर मेरे तारों जड़ी,
ना पेड़े बर्फी मेवा है माँ,
बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़ी,
इस श्रद्धा की रखलो लाज हे माँ,
इस अर्जी को ना ठुकरा जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।।



जिस घर के दीये में तेल नहीं,

वहाँ ज्योत जलाऊं मैं कैसे,
मेरा खुद ही बिछौना धरती पर,
तेरी चौकी सजाऊं मैं कैसे,
जहाँ मैं बैठा वहीं बैठ के माँ,
बच्चों का दिल बहला जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।।



तू भाग्य बनाने वाली है,

माँ मैं तकदीर का मारा हूँ,
हे दाती संभालो भिखारी को,
आखिर तेरी आँख का तारा हूँ,
मैं दोषी तू निर्दोष है माँ,
मेरे दोषों को तू भुला जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।।



कभी फुर्सत हो तो जगदंबे,

निर्धन के घर भी आ जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।।

स्वर – सोनू निगम।
प्रेषक – जयप्रकाश बंसल।
9034660000


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