जो है वो भुलाने के,
काबिल नहीं है,
नहीं है वो पाने के,
काबिल नहीं है।।
जो है वो अभी है,
यही है हम उसमें,
किसी को दिखाने के,
काबिल नहीं है।।
हम उसके ही द्वारा,
ये सब देखते है,
वो है बस बताने के,
काबिल नहीं है।।
ना होते हुए है,
ऐसा जो भासता है,
वह विश्वास लाने के,
काबिल नहीं है।।
जो है वही सत है,
वह परमात्मा है,
असत से छिपाने के,
काबिल नहीं है।।
‘पथिक’ तुम जहाँ हो,
वहीं पर तो वो है,
वो खोज लगाने के,
काबिल नहीं है।।
जो है वो भुलाने के,
काबिल नहीं है,
नहीं है वो पाने के,
काबिल नहीं है।।
स्वर – श्री प्रेमभूषण जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202
 
			








 
