जीवन की गाड़ी,
चली जा रही है,
उतरने की मंजिल,
करीब आ रही है।।
नर तन की ट्रेन में,
आयु रिजर्वेशन,
अहंकार ही सीट है,
डिब्बा ही है मन,
ये तेजी से रफ्तार,
चली जा रही है,
उतरने की मंजिल,
करीब आ रही है।।
सबसे पहले देखा था,
बचपन का टेशन,
मिला बाद में फिर,
जवानी का जंक्शन,
ये बुढ़ापे से आगे,
बड़ी जा रही है,
उतरने की मंजिल,
करीब आ रही है।।
दिन रात पटरी,
पर दौड़ती है,
मुसाफिर को अपनी,
जगह छोड़ती है,
ये रस्ते के सब दृश्य,
दिखला रही है,
उतरने की मंजिल,
करीब आ रही है।।
छूटेगा अपने,
परायों का मेला,
‘राजेश्वरानंद’,
उतरना अकेला,
तबीयत बहुत यार,
घबरा रही है,
उतरने की मंजिल,
करीब आ रही है।।
जीवन की गाड़ी,
चली जा रही है,
उतरने की मंजिल,
करीब आ रही है।।
स्वर – श्री अंकुश जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202
 
			








 
