जाने वो कौन सी घड़ी थी,
दोहा – दशरथ नंदन राम,
वन को जावत है,
इक्ष्वाकु वंश कहावत,
पितु का वचन निभावत है।
सूरज जैसे ज्योति बिन,
तरुवर ज्यूँ फल हीन,
राम बिना दसरथ विकल,
जैसे जल बिन मीन।
जाने वो कौन सी घड़ी थी,
मेरे राम अवध से निकले,
हृदय के प्राण हो तुम,
हृदय से प्राण निकले।।
राम बसत मन राम बसत तन,
राम ही मेरी छाया,
राम जीवन धन राम रटत मन,
राम रटत सुख पाया,
मुझको कैसे भूल गया तू,
सारे बंधन तोड़ गया तू,
आके लग जा गले,
लग जाओ गले,
जाने वो कौन सी घडी थी,
मेरे राम अवध से निकले।।
कैकई ने जब कोप किया था,
पितु का वचन निभाए,
रुखा सुखा भोजन वन में,
दर्द में भी मुस्काए,
सबके कष्ट मिटा करके भी,
रुखा सुखा खा करके भी,
अधर प्रसन्न रहे,
प्रसन्न रहे,
जाने वो कौन सी घडी थी,
मेरे राम अवध से निकले।।
सब की माता जो कहलाए,
राम के संग गई थी,
ग्रास की सेज पे सोने वाली,
ऐसी ममतामई थी,
वन वन घूमे सीता माता,
भक्तों की जो भाग्य विधाता,
नंगे पाँव चले,
वन में चले,
जाने वो कौन सी घडी थी,
मेरे राम अवध से निकले।।
जाने वो कौन सी घडी थी,
मेरे राम अवध से निकले,
हृदय के प्राण हो तुम,
हृदय से प्राण निकले।।
गायक – विजय कुमार दुबे।
9993143243
देखे – कैकई तूने लूट लिया।