जा काया नहीं है तेरी,
दोहा – प्यास लगती है तो,
पनघट की याद आती है,
लाज लगती है तो,
घूँघट की याद आती है,
उम्र बढ़ती है तो,
बचपन की याद आती है,
जब बुढ़ापा आ जाता है,
तो मरघट की याद आती है।
जा काया नहीं है तेरी,
काहे करे मेरी और तेरी।।
जिनसे तू हँस-हँस बतरावे,
पल की करेंगे न देरी,
काहे करे मेरी और तेरी।।
यमराजा जब लेने आएंगे,
ले जेहे पकड बरजोरी,
काहे करे मेरी और तेरी।।
जा काया को गरब न करियो,
बन जाने राख की ढेरी,
काहे करे मेरी और तेरी।।
जा काया नहिया तेरी,
काहे करे मेरी और तेरी।।
गायक – लखन रघुवंशी जी।
Upload – Ravindra
7354545898