हरि सुमिरन में मन को लगाले,
दोहा – वो तो फूटे हुए,
भाग्य जगाते है,
वो जो बिगड़े हुए,
काज बनाते है,
डूबती नैया के,
वो सहारे लगाते है,
वो किनारे है।
सारा जीवन यूँ ना गवाना,
हरि के भजन में मन को लगाना,
अंत समय फिर पछताएगा,
धन दौलत कुछ काम ना आयेगा,
हरि भजन में मन लगाले,
तु लगाले लगाले,
लगाले लगाले,
हरि सुमरन में मन को लगा लें।।
तर्ज – तु बुलाले बुलाले ओ रब्बा।
पहले बचपन गवाया,
फिर जवानी गवाई,
अब बुढ़ापे में मन को लगाले,
धन दौलत में क्यों,
झूठे रिस्तो में तु,
उलझा रहता है खुद को बचाले,
इस दौलत को छोड़ के आजा,
झूठे रिश्ते तोड़ के आजा,
प्रभू भजन में मन लगाले,
तु लगाले लगाले,
लगाले लगाले,
हरि सुमरन में मन को लगा लें।।
हरि का सुमरन करे जो,
हरि का कीर्तन करे जो,
उसकी नैया को पार लगाए,
सारे जीवन का सार,
इनकी शक्ति अपार,
तेरे बिगड़े भी काम बनाए,
जग के बंधन छोड़ के आजा,
झूठी माया छोड़ के आजा,
हरि भजन में मन लगाले,
तु लगाले लगाले,
लगाले लगाले,
हरि सुमरन में मन को लगा लें।।
सारा जीवन यूं न गवाना,
प्रभू के सरन में ध्यान लगाना,
सारे बिगड़े काज बना दे,
डूबती नैया पार लगादे,
तु लगाले लगाले,
लगाले लगाले,
हरि सुमरन में मन को लगा लें।।
हरि का नाम ले पगले,
तु भव से पार हो जाए,
हरि का नाम तू जपले,
तेरा उद्धार हो जाए,
हरि का नाम ही जग है,
हरि का नाम ही सब है,
हरि नाम जपने वालो को,
मिलता साहिल है रे,
तु लगाले लगाले,
लगाले लगाले,
हरि सुमिरन में मन को लगाले।।
रचित – कमलकांत विश्वकर्मा।
8463833468