एक पल बीते जैसे,
कल्प समान रे।
दोहा – कागा सब तन खाईज्यो,
मेरा चुन चुन खाईज्यो मांस,
मेरा दो नैण मत खाईज्यो,
म्हाने राम मिलन की आस।
एक पल बीते जैसे,
कल्प समान रे,
कदगी मैं जोऊं बाट,
ना आए भगवान रे।।
तर्ज – छुप गया कोई रे।
पानी तक पीऊंं नाही,
अन्न नही खाऊं मैं,
आप किया भोगूं पिया,
घणी पछताऊ मैं,
कार पार कर दीनी,
तोड़ी लखन आन रे,
कदगी मैं जोऊं बाट,
ना आए भगवान रे।।
लकड़ी ल्याऊं चिता बणाऊं,
काया भष्म करूं मैं,
सुली सम छण बीते,
कैसे धीर धरूं मैं,
कर आत्मघात नाथ,
तज दुंगी प्राण रे,
कदगी मैं जोऊं बाट,
ना आए भगवान रे।।
कपटी रुप कियो रावण,
भेष धर आया रे,
भिक्षा ल्यावो प्रण निभावो,
यह फरमाया रे,
गृस्थधर्म कूलमुर्यादा,
टुटयां होव हाण रे,
कदगी मैं जोऊं बाट,
ना आए भगवान रे।।
सूखा दिल दरिया नैण,
काली पड़गी काया रे,
पापी दुष्टी राक्षसों की,
देख देख माया रे,
पवन कहे बलवन्ता,
हुणी बलवान रे,
कदगी मैं जोऊं बाट,
ना आए भगवान रे।।
एक पल बिते जैसे,
कल्प समान रे,
कदगी मैं जोऊं बाट,
ना आए भगवान रे।।
गायक – समुन्द्र चेलासरी।
मो. – 8107115329
लेखक – बलवन्त राम लौट चेलासरी।








