बड़े भाग्य से ये मनुज तन मिला है,
गंवाते गंवाते उम्र पार कर दी,
खाने कमाने में आयु गँवा दी,
यूँ ही जिंदगी हमने बेकार कर दी।।
तर्ज – हुजूर आते आते।
अभी चेत जा वक़्त जो भी बचा है,
भला काल मुख से ना कोई बचा है,
जरा सोच ले साथ ले जायेंगे क्या,
यूँ ही जिंदगी हमने है भार कर दी।।
है संसार सागर में जीवन की नैया,
है पतवार सत्कर्म सतगुरु खिवैया,
माया के चक्कर में फँसकर हमने,
जीवन की नैया मझदार कर दी।।
अगर चाहता है अपना कल्याण प्राणी,
तो ले मान सच्चे सतगुरु की वाणी,
लगा अपना जीवन सत्कर्म में अब,
अभी तक तो यह उम्र बेकार कर दी।।
बड़े भाग्य से ये मनुज तन मिला है,
गंवाते गंवाते उम्र पार कर दी,
खाने कमाने में आयु गँवा दी,
यूँ ही जिंदगी हमने बेकार कर दी।।
स्वर – श्री प्रेमभूषण जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202
 
			








 
