आजा आजा रे सांवरिया,
नरसी टेर लगावे रे।
सवैया – गर्ज से अर्जुन क्लीव भये,
अरु गर्ज से गोविंद धेनु चरावे।
गर्ज से द्रौपदि दासी भई,
अरु गर्ज से भीम रसोई पकावे।
गर्ज बरी त्रय लोकन में,
अरु गर्ज बिना कोई आवे न जावे।
गंग कहे सुन शाह अकबर,
गर्ज से बीबी गुलाम रिझावे।
दोहा – दीनानाथ अनाथ का,
भला मिला संजोग,
अगर मुझे तारोगे नहीं,
तो हंसी करेंगे लोग।
आजा आजा रे साँवरिया,
नरसी टेर लगावे रे,
भात भरन री बेला,
अब क्यों देर लगावे रे।।
मैं तो थारे भरोसे आयो,
में तो संग साधा ने ल्यायो,
मैं तो आकर के पछतायो,
मैं तो आकर के शरमायो,
थाने शरम नी आवे रे,
भात भरन री बेला,
अब क्यों देर लगावे रे।।
जो तू भात भरन नहीं आसी,
नानी रो रो कर मर जासी,
थारी होवे जग में हांसी कानूड़ा,
अब होवे जग में हांसी तू क्यों,
हांसी करावे रे,
भात भरन री बेला,
अब क्यों देर लगावे रे।।
नरसी गावे राग केदारा,
सुनकर रोवे साधु सारा,
संग में राधा रुक्मण लेने,
संग में राधा रुक्मण लेने,
सांवरियो पधारे रे,
भात भरन री बेला,
अब क्यों देर लगावे रे।।
सुनकर सेठ सांवरो आयो,
ओ संग में ग्वाल बाल ने लायो,
थारो ‘वेद विमल’ जस गावे कानुडा,
नैया पार लगावे रे,
भात भरन री बेला,
अब क्यों देर लगावे रे।।
आजा आजा रे सांवरिया,
नरसी टेर लगावे रे,
भात भरन री बेला,
अब क्यों देर लगावे रे।।
गायक – रमेश जी शर्मा।
प्रेषक – विनोद कुमार वैष्णव।
9414240116