नव सौ नव सौ बैल घर घर में, 
ए घोडा किन रा बांधिया हो।।
श्लोक – भक्त बिज पलटे नही, 
जो जुग जाए एकांत, 
ऊँच नीच घर अवतारे, 
वो रहे संत रो संत।
नव सौ नव सौ बैल घर घर में, 
ए घोडा किन रा बांधिया हो,
राणा रा तांगा कहिजे बैल मीरा, 
घर घर में ए घोडा वही बांधिया हो।।
रमे खेले ने घरे आव मीरा,
राणोजी आया है थाने लेवन ने हो,
कुन तो राणो ने कुन है राम, 
जुग में किन रे राजा रा कहिजे दिकरा हो।।
हस ने मुलखेनी मीठी बोल मीरा, 
ओछी उम्र में थोड़ो जीवनो जी,
जोगण हो जाऊं जग रे माय, 
राणा गूथ लावुला हरी रा सेवरा हो जी।।
बांधो गलेरे नवसर हार मीरा,
सुडला पेरो थी हस्थी दाँत रा हो जी,
सुडला थारी रानी ने पेराव राणा,
मीरा पेरेला हरी रा लुंगड़ा हो जी,
तटके तोड़ू नवसर हार राणा,
गढ़ री सीखा सु तोड़ू सुडला हो जी।।
रविदास दीना है उपदेश राणा,
साधू दिया है हरी रा लुंगड़ा हो जी,
ओशी समारा वाली जात मीरा, 
मुया ढोरारा काटे सांबड़ा हो जी।।
रविदास कहिजे मायड़ बाप राणा,
मेतो संतो रे पग री मोजड़ी हो जी,
गावे गावे मीरा बाई आप भाईडा,
गुरु रविदास ज्याने भेटिया हो जी।।
नव सौ नव सौ बैल घर घर मे, 
ए घोडा किन रा बांधिया हो,
राणा रा तांगा कहिजे बैल मीरा, 
घर घर में ए घोडा वही बांधिया हो।।
“श्रवण सिंह राजपुरोहित द्वारा प्रेषित”
सम्पर्क : +91 9096558244
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