ग्वालिड़ा तू जाने काई पीड़ पराई,
(राग सोरठ भजन)
दोहा – सोरठ तब ही गाइये,
जब आधी ढल जाए,
ज्ञानी है तो उठ सुणे,
और मूरख सुण सो जाए।
सोरठ रो दोहो भलो,
और कपडा भला सफ़ेद,
परदेसी मित्र भला जी,
और लिख लिख पतिया भेज।
सोरठ मेहलां उतरी,
और झांझर की झंकार,
धूजे गढ़ का कांगरा,
और धूजे गढ़ गिरनार।
सोरठ राग सुहावनी,
मत छेड़ो परिवाद,
उड़ता पंछी गिर पड़े,
के उठे वैराग।
जाने काई पीड़ पराई,
ग्वालिड़ा तू जाने काई पीर पराई,
ग्वालीड़ा तू जाणे काई पीर पराई।।
कांधे कमलिया हाथ लकुटिया जी,
बन बन धेनु चराई,
बन बन धेनु चराई,
ग्वालीड़ा तू जाणे काई पीर पराई।।
बैठ कदम्ब पर मुरली बजाई जी,
धेनु सब घिर घिर आई,
धेनु सब घिर घिर आई,
ग्वालीड़ा तू जाणे काई पीर पराई।।
जन्मत मात पिताजी ने त्यागा जी,
कुब्जा ने कंठ लगाई,
कुब्जा ने कंठ लगाई,
ग्वालीड़ा तू जाणे काई पीर पराई।।
चोर चोर दही माखन खायो जी,
बृज की नार ठगाई,
बृज की नार ठगाई,
ग्वालीड़ा तू जाणे काई पीर पराई।।
राजा माधोसिंह सवाई प्रतापसिंह जी,
जिनने ये सोरठ गाई,
जिनने ये सोरठ गाई,
ग्वालीड़ा तू जाणे काई पीर पराई।।
जाने काई पीड़ पराई,
ग्वालीड़ा तू जाने काई पीर पराई,
ग्वालीड़ा तू जाणे काई पीर पराई।।
गायक – रमेश जी दाधीच।
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