मानव थोड़ी सी जिंदगानी,
गहरी काई नीम लगावै रे।।
बिगडी हिरणाकुश की शान,
रावण कैसा था विधवान,
जाका पता नही पाया रै,
मानव थोडी सी ज़िंदगानी,
गहरी काई नीम लगावै रै।।
एक दिन उडी बाली कि धुल,
योध्दा होग्या चकना चूर,
काल सब ने खावै रै,
मानव थोडी सी ज़िंदगानी,
गहरी काई नीम लगावै रै।।
चला गया रिसी मुनी अवतार,
केरव पांडु कि हो गयी छार,
दुसासन कंस जावै रै,
मानव थोडी सी ज़िंदगानी,
गहरी काई नीम लगावै रै।।
यो काई गर्भ करे नादान,
है तू दो दिन को मेहमान,
चेतन राम भजो भगवान,
डंका काल बजावै रै,
मानव थोडी सी ज़िंदगानी,
गहरी काई नीम लगावै रै।।
मानव थोड़ी सी जिंदगानी,
गहरी काई नीम लगावै रै।।
गायक – मनोहर परसोया किशनगढ।