कैसे ना इठलाऊं मैं,
बरसाना मिला है,
बरसाना मिला है,
रह जाना मिला है,
जीना मिला है,
मर जाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
देखे – अपनी पायल का घुंघरू बना लो मुझे।
जप तप साधन के बस की नहीं है,
केवल किशोरी जी की करुणा भई है,
रोम रोम ये खिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
सोचने से पहले होता प्रबंध है,
कैसे बताऊं आनंद ही आनंद है,
शिकवा ना कोई गिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
ब्रजवासियों के टुकड़ों पे पले हरिदासी,
संतों के पीछे पीछे चले हरिदासी,
जीवन का यही सिलसिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
कैसे ना इठलाऊं मैं,
बरसाना मिला है,
बरसाना मिला है,
रह जाना मिला है,
जीना मिला है,
मर जाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
स्वर – साध्वी पूर्णिमा दीदी जी।