विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी,
बोल सदा शुद्ध मीठी वाणी,
जुगती मुगति पाई रे,
इण मूल मंत्र से।।
तीस दिवस तक सुतक रखणा,
पांच दिवस ऋतुवन्ती रहणा,
बेगो उठ ने न्हाई रे,
नित निर्मल जल से।।
शील संतोष सुधिरा किजे,
दोनो काल की संध्या किजे,
भजन आरति गाई रे,
नित प्रेम भाव सु।।
प्रात:काल नित हवन करिजे,
ईधण पाणी दूध छाणीजे,
मीठा बोल सुणाई रे,
नित सच्चे भाव सु।।
क्षमा दया हृदय नित धारो,
चोरी निन्दा झूठ निवारो,
व्यर्थ विवाद मिटाई रे,
अहंकारी मन सु।।
व्रत अमावस को राखिजे,
विष्णु नाम को जाप जपिजे,
जीवों पे दया दिखाई रे,
नित करूण भाव से।।
लीलो रूख मति काटिजे,
अजर काम अरु क्रोध जरीजे,
पर्यावरण बचाई रे,
नित सेवा भाव सु।।
निज हाथो से भोजन पकाजे,
बकरा बैल अपर रखाजे,
साचो धर्म निभाई रे,
मत करि शर्म तु।।
अमल तंबाकु भांग न पीणा,
मद मांस का नाम ना लेना,
सदा ही डरतो रही रे,
इण बुरे कर्म सु।।
नीलो पहरण मना करायो,
रामरतन गुरु शरणे मायो,
बिश्नोई कहलाई रे,
उनतीस धर्म सु।।
विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी,
बोल सदा शुद्ध मीठी वाणी,
जुगती मुगति पाई रे,
इण मूल मंत्र से।।
गायक – संत राजूरामजी महाराज।
लेखन – रामरतन जाणी बिश्नोई।
प्रेषक – सुरेश बिश्नोई जोधपुर।