उतरा सागर में जो,
उसको मोती मिले,
खोज की जिसने मेरी,
मुझे पा लिया,
नुक्ता चीं शंकावादी,
को मैं ना मिला,
मुझको तो शबरी का,
भोलापन भा गया,
उतरा सागर मे जो,
उसको मोती मिले।।
तर्ज – छोड़ दे सारी दुनिया।
तूने मूरत कहा,
मैं मूरत वान था,
तूने पत्थर कहा,
मैं भी पाषाण था,
ये तो तेरे ही विश्वास,
की बात है,
ये तो तेरे ही विश्वास,
की बात है,
धन्ना जाट बुलाया,
मैं झट आ गया,
उतरा सागर मे जो,
उसको मोती मिले।।
ये तो सच है की तूने,
बुलाया नहीं,
बिन बुलाए कभी मैं भी,
आया नहीं,
तूने प्रेम से मुझको,
खिलाया नहीं,
तूने प्रेम से मुझको,
खिलाया नहीं,
मैं विदुरानी के छिलके,
तक खा गया,
उतरा सागर मे जो,
उसको मोती मिले।।
उतरा सागर में जो,
उसको मोती मिले,
खोज की जिसने मेरी,
मुझे पा लिया,
नुक्ता चीं शंकावादी,
को मैं ना मिला,
मुझको तो शबरी का,
भोलापन भा गया,
उतरा सागर मे जो,
उसको मोती मिले।।
स्वर – श्री धन्वंतरि दास जी महाराज।