सुनकर ना मन द्रवित हो,
वो भजन भजन नहीं है,
हो ना सत्यता का दर्शन,
वो वचन वचन नहीं है।।
मंदिर पे ध्वज को देखा,
गर्दन जरा झुका ली,
यदि मन नहीं झुका तो,
वो नमन नमन नहीं है,
सुन कर न मन द्रवित हो,
वो भजन भजन नहीं है,
हो ना सत्यता का दर्शन,
वो वचन वचन नहीं है।।
उपवन में देखिये तो,
सारे सुमन खिले है,
जो ना मंत्र मुग्ध कर दे,
वो सुमन सुमन नहीं है,
सुन कर न मन द्रवित हो,
वो भजन भजन नहीं है,
हो ना सत्यता का दर्शन,
वो वचन वचन नहीं है।।
संवेदना हो स्वर में,
पत्थर भी पिघलता है,
राही अगर ना पिघला,
वो रूदन रुदन नहीं है,
सुन कर न मन द्रवित हो,
वो भजन भजन नहीं है,
हो ना सत्यता का दर्शन,
वो वचन वचन नहीं है।।
सुनकर ना मन द्रवित हो,
वो भजन भजन नहीं है,
हो ना सत्यता का दर्शन,
वो वचन वचन नहीं है।।
स्वर – श्री प्रेमभूषण जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202
 
			








 
