सुन सागर में झूलणो,
दोहा – झण्डा फरूंके शिखर मे,
बाजै अनहद तुर,
तकिया जिसका मैदान में,
चढ़े कोई बिरला सूर।
सुन सागर में झूलणो,
हेली म्हारी,
ले सतगुरु जी री सार।।
हेली म्हारी,
चाल बसो उण देश में,
जहां हंसा बसै अपार,
बोले बोल सवावणा,
मोती चुगे विचार,
म्हारी हेली ए,
सुन सागर में झूलणों।।
कुट कुट हंसा बसै,
सुन सागर विश्राम,
छिलर जल बैठे नही,
पाई बैगम धाम,
म्हारी हेली ए,
सुन सागर में झुलणों।।
हंस हसा ने सुवावणा,
बुग संग बैठे नाय,
बुग छिलर छैजा करे,
हंस समुन्द्रा माय,
म्हारी हेली ए,
सुन सागर में झुलणों।।
हंस बगुला इक सार सा,
गुण कर दिखै दोय,
बनानाथ मन उजला,
हंस कहावै सौय,
म्हारी हेली ए,
सुन सागर में झुलणों।।
सुन सागर में झूलणों,
हेली म्हारी,
ले सतगुरु जी री सार।।
बाणी – बन्नानाथ जी महाराज।
गायक – समुन्द्र चेलासरी।
मो. – 8107115329








