किस धुन में तू बैठा बावरे,
तू किस मद में मस्ताना है,
सोने वाले जाग जा,
संसार मुसाफिर खाना है।।
क्या लेकर आया था जग में,
फिर क्या लेकर जाएगा,
फिर क्या लेकर जाएगा,
मुट्ठी बांधे आया जग में,
फिर हाथ पसारे जाना है,
ओ सोने वालें जाग जा,
संसार मुसाफिर खाना है।।
कोई आज गया कोई कल गया,
कोई चंद रोज में जाएगा,
कोई चंद रोज में जाएगा,
जिस घर से निकल गया पंछी,
उस घर में फिर नहीं आना है,
ओ सोने वालें जाग जा,
संसार मुसाफिर खाना है।।
कहे ‘भिक्षु’ यति हरि नाम जपो,
फिर ऐसा समय ना आएगा,
फिर ऐसा समय ना आएगा,
पाकर कंचन सी काया को,
फिर हाथ मिंज पछताना है,
ओ सोने वालें जाग जा,
संसार मुसाफिर खाना है।।
किस धुन में तू बैठा बावरे,
तू किस मद में मस्ताना है,
सोने वाले जाग जा,
संसार मुसाफिर खाना है।।
स्वर – पूज्य राजन जी महाराज।








