सावन में सांवरे को,
झूला झुला रहा हूँ,
बाबा के संग भगतो को,
बाबा के संग भगतो को,
भी मैं रिझा रहा हूँ।।
अंखियां दरश को बाबा,
कब से तरस रही है,
सावन के जैसे बाबा,
ये क्यूं बरस रही है,
ये दयालु की दया जो,
मैं आज पा रहा हूं,
सावन में साँवरे को,
झूला झुला रहा हूँ।।
ग्यारह महीने मुझको,
तेरा इंतज़ार रहता,
मेरे हाथ तेरी डोरी,
होगी मैं सबसे कहता,
शुभ दिन है आज वो,
ना फूला समा रहा हूं,
सावन में साँवरे को,
झूला झुला रहा हूँ।।
कहते है श्याम मुझसे,
ऐसे ही आऊंगा मैं,
गर तेरे भाव सच्चे,
यू ही रीझ जाऊंगा मैं,
‘राजू’ मैं भी तो मिलने,
प्रेमी से आ रहा हूं,
सावन में साँवरे को,
झूला झुला रहा हूँ।।
सावन में सांवरे को,
झूला झुला रहा हूँ,
बाबा के संग भगतो को,
बाबा के संग भगतो को,
भी मैं रिझा रहा हूँ।।
गायक – राजेन्द्र अग्रवाल देई।
97844835688