राम गुण गायले रे,
जब तक सुखी शरीर।
दोहा – राम भज्याकर मानवी,
तू कर कर मन में कोड,
बार -बार आवे नही,
आ मिनख जन्म री मौज।
मिनख जन्म री मौज में,
क्यो भूल्यो फिरे गिंवार,
बणज्यारे गी बैल ज्यूं,
गयो जमारो हार।
राम गुण गायले रे,
जब तक सुखी शरीर,
पाछै याद आवसी रे,
जद पिंजर व्यापे पीर,
हरि रा गुण गायले रे,
जब तक सुखी शरीर।।
भाग बड़ा म्हाने सतगुरु मिलीया,
पड़यो भजन में सीर,
हंसा होय चुग लिजिए रे,
नाम अमोलख हीर,
हरि रा गुण गायले रे,
जब तक सुखी शरीर।।
अवसर थारो दिनों दिन बित्यो,
ज्यों अंजली गो नीर,
हंसा फिर नही आवणो रे,
इं मान सरोवर तीर,
हरि रा गुण गायले रे,
जब तक सुखी शरीर।।
जौबन थक्यां भज लिजिए रे,
देर ना करज्यो म्हारा बीर,
चाल बुढपो आवसी रे,
रेवो ना मन में धीर,
हरि रा गुण गायले रे,
जब तक सुखी शरीर।।
सब देवां रो देव राम जी,
सब पीरां रो पीर,
कहत कबीर भज लिजिए रे,
राम जी सुख गी सीर,
हरि रा गुण गायले रे,
जब तक सुखी शरीर।।
राम गुण गायले रें,
जब तक सुखी शरीर,
पाछै याद आवसी रे,
जद पिंजर व्यापे पीर,
हरि रा गुण गायले रे,
जब तक सुखी शरीर।।
गायक – समुन्द्र चेलासरी।
मो – 8107115329
 
			








 
