पंछीड़ा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी,
ईश्वर ने तू भूल गयो रे,
लख चौरासी काटी,
पंछीडा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी।।
गर्भवास में दुःख पायो थारे,
घणा दीना री घाटी,
बाहर आय राम ने भूल्यो,
उल्टी पढ़ ली पाटी,
पंछीडा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी।।
जीव जन्तु ने खाय खाय ने,
बदन बणायो बाडी,
अपने स्वारथ कारणे ने,
लाखा री गर्दन काटी,
पंछीडा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी।।
माखन बेच्यो दहिड़ो बेच्यो,
बेचीं छाछ री छांटी,
माया ने ले घर में बूरी,
ऊपर लगा दी टाटी,
पंछीडा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी।।
आया गया थारा मेहमाना ने,
घाले चूरमो बाटी,
भूखा प्यासा साधुड़ा ने,
घाले राबड़ी खाटी,
पंछीडा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी।।
कहत गुलाब सुणो रे भाई संतो,
लख चौरासी काटी,
आखिर थाने जाणों पड़सी,
जम रा ज्यारी घाटी,
पंछीडा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी।।
पंछीड़ा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी,
ईश्वर ने तू भूल गयो रे,
लख चौरासी काटी,
पंछीडा लाल आछी,
पढ़ियो रे उलटी पाटी।।
गायक – मोईनुद्दीन जी मनचला।
प्रेषक – अनिल गर्ग।
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