मत बहे मोह की धारा रे हंसा,
मत बहें मोह की धारा,
झूठो है संसारा रे हंसा,
मत बहें मोह की धारा।।
झूठी काया ने झूठी माया,
झूठो है संसारा,
झूठी अर्धांगिनी तोहे भरमावे,
नहीं उतरण देगा पारा रे हंसा,
मत बहें मोह की धारा।।
दूरमती दोहेला बहो जल गंदला,
कपटी फिरे बहुरि फेरा,
अहंकार लहरा आवे जावे,
मद का उड़े फुहारा रे हंसा,
मत बहें मोह की धारा।।
काम क्रोध एमे कछुमे बसें,
लोभ मगर खाय थारा हाडा,
आशा त्रष्णा की कांजी भवे,
एखे पीवेगा वही बीमारा है हंसा,
मत बहें मोह की धारा।।
खोज केवटिया नाव करीले भाई,
मत होय उनसे न्यारो,
कहे गुरु सिंगा सुनो भाई साधो,
डूबेगा मुंड द्ववारा रे हंसा,
मत बहें मोह की धारा।।
मत बहे मोह की धारा रे हंसा,
मत बहें मोह की धारा,
झूठो है संसारा रे हंसा,
मत बहें मोह की धारा।।
गायक – गोविंद यादव।
प्रेषक – घनश्याम बागवान।
(बजरंज मण्डल सिद्दीकगंज)
7879338198








