मन रे ऐसा सतगुरु जोई,
दोहा – बन व्यापारी आ गया,
सतगुरु दीनदयाल,
अनंत गुणा की संपदा,
लाया अनोखो माल।
ब्रह्म ज्ञान सो परम् सुख,
यही ज्ञानसुख मूल,
ताकू हिरदे उपजे,
सकल मिटे भव शूल।
मन रे ऐसा सतगुरु जोई,
भगति योग ओर ज्ञान वेरागा,
शीलवान निरमोई।।
पर उपकार सदा हितकारण,
जग में निसरै सोई,
दे उपदेस दया के दाता,
जन्म मरण दुख धोइ।।
निंदा ओर स्तुति दोनों,
हरष शोक ना होइ,
सम दृस्टि सब ने देखे,
क्या मंत्री क्या द्रोही।।
देह अभिमान भेष री बड़पन,
रंच मात्र न होई,
दयावान निरलोभी ऐसा,
ज्ञान गुरु संग होइ।।
लादूराम संत कोई ऐसा,
बिरला जग में कोई,
पारस भँवर चंदन सतसंगा,
ऐसा कर दे कोई।।
मन रें ऐसा सतगुरु जोई,
भगति योग ओर ज्ञान वेरागा,
शीलवान निरमोई।।
गायक / प्रेषक – श्यामनिवास जी।
919024989481









Mast Or acha
इस भजन की छाप में गड़बड़ है यह भजन कबीर साहब का है लादू दास जी महाराज का नहीं इसकी छाप है,, कहे कबीर संत कोई बिरला ,लादे जगरे माही । पारस भंवर चंदन सत्संगा, ऐसा कर दे वोही मन रे ऐसा सतगुरु जोई